एनसीईआरटी सामाजिक विज्ञान कक्षा 7 भूगोल अध्याय 5 “जल”
कक्षा 7 अध्याय “जल” (भूगोल) भी एक महत्वपूर्ण पाठ है। कक्षा 7 के छात्रों के लिए यहाँ पर भूगोल विषय के अध्याय 5 “जल” को सरल भाषा में समझाया गया है । जो भी बच्चे भूगोल विषय में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते है, उन्हें इस पाठ को ध्यान से सिर्फ एक बार पढ़ना है। उन्हें यहाँ पर इस अध्याय का पूरा हल भी मिल जायेगा। कक्षा 7 अध्याय “जल” (भूगोल) पाठ को सिर्फ पढ़ना ही नहीं है बल्कि समझकर जीवन में अमल भी करना है।
अगर आपने भूगोल का पाठ १ पर्यावरण , पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर” ,पाठ ३ हमारी बदलती पृथ्वी और पाठ ४ “वायु” नहीं पढ़ा है तो लिंक पर क्लिक कर पढ़ और समझ सकते हैं।
एनसीईआरटी कक्षा 7 भूगोल अध्याय 5 “जल”
जल एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।
प्रकृति ने इसे भरपूर मात्रा में हमे उपयोग करने के लिए दिया है। पृथ्वी का 70 % भाग जल से ही घिरा हुआ है।
यह जल ज़मीन के ऊपर, ज़मीन के अंदर, हवा में, आकाश में, ध्रुवों एवं पर्वतों पे मौजूद है।
यह रंगहीन (COLOURLESS), गंधहीन (ODOURLESS) और स्वादहीन (TASTELESS) होता है।
इसके बावजूद कोई भी प्राणी इस जल के बिना नहीं रह सकता।
पृथ्वी ही एक मात्र ग्रह है जहाँ जल मौजूद है।
जल चक्र (WATER CYCLE)
बर्फ पिघलकर जल बनता है।
गर्मी के कारण जल वाष्प बनकर उड़ जाता है।
संघनित होकर जलवाष्प बादलों का रूप लेता है।
और फिर वर्षा या हिम के रूप में नीचे गिरता है।
बर्फ के पिघलने, वाष्पित होने, संघनित होकर बादल बनने और फिर वर्षा के रूप में धरती पर गिरने की प्रक्रिया को ही जल चक्र कहते हैं।
इसी प्रकार जल पहाड़ों से महासागर, महासागर से वायुमंडल, और वायुमंडल से पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है।
क्या आप जानते हैं कि जल के एक भी बूँद को हम बर्बाद नहीं कर सकते ? यही कारण है कि जो जल सदियों पूर्व उपस्थित था वही आज भी मौजूद है।
लवणीय और अलवणीय जल
सागरों और महासागरों के जल में नमक की मात्रा अधिक पायी जाती है।
इस वजह से इनका जल लवणीय होता है।
इसमें सोडियम क्लोराइड एवं एवं खाने में उपयोग किया जाने वाला नमक होता है।
नदी, तालाब, झील, भूमिगत जल एवं हिम अलवण (मीठे) जल के मुख्य श्रोत हैं।
लवणता (salinity) 1000 ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है।
महासागरों की औसत लवणता 35 ग्राम (3.5 %) भाग प्रति 1000 है।
इज़राईल के मृत सागर (DEAD SEA) में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है जिसकी वजह से इसमें कोई डूबता नहीं है।
आप समुद्र में पानी पे लेटकर अखबार पढ़ सकते हैं।
जल का वितरण (कक्षा 7 भूगोल अध्याय 5 “जल”)
पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जल से ही ढका हुआ है। इसके बावजूद बहुत सारे देश जल की कमी से जूझ रहे है।
महासागर (SEA AND OCEANS) – 97.3 %
बर्फ के रूप में – 02.0 %
भूमिगत जल – 00.68%
झील का मीठा जल – 00.09%
झील का खारा जल – 00.09%
वायुमंडलीय जल – 00.0019%
नदियां – 00.0001%
पृथ्वी पे मौजूद कुल जल का सिर्फ 1 % जल ही हमारे पीने के लिए बचा है https://www.hindivarta.com/water-conservation-essay-in-hindi/।
महासागरीय परिसंचरण (OCEAN WATER CIRCULATION)
क्या आपने तालाब, नदी और समुद्र देखा है ?
तो फिर आपको यह स्पष्ट अंतर भी दिखा होगा।
तालाब का जल शांत होता है, नदी के जल में थोड़ी सी हलचल होती है और समुद्र का जल हमेशा गतिमान होता है। महासागरों के जल की गतियों को हम तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं – तरंगे (WAVES), ज्वार-भाटा (TIDES) और धाराएं (CURRENTS)
तरंगें (समुद्री लहर):
समुद्र एक विशाल खुली जगह है।
खुली जगह होने के कारण यहाँ हवा तेज़ गति से बहती है।
हवा के कारण समुद्री सतह पर जल लगातार उठता और गिरता रहता है जिसे समुद्री लहर कहते हैं।
समुद्र में नहाते वक़्त लोग इन लहरों का खूब आनंद लेते हैं।
बच्चे समुद्र में हवाई चप्पल या फिर नारियल पानी पीने के बाद खली नारियल को समुद्र में दूर फेंकते हैं।
कुछ देर बाद समुद्री लहर उसे वापस तट पे ले आती है।
जबतक ये लहरें सामान्य हैं तबतक इनसे कोई विशेष खतरा नहीं है।
मगर कभी-कभी समुद्र के अंदर भू-कम्प, ज्वालामुखी के कारण ये लहरें बहुत ऊंची उठती हैं और खतरनाक हो जाती हैं। जब यह 15 मीटर (50 फ़ीट) ऊंची उठती हैं तो इन्हें सुनामी कहते हैं।
अबतक की सबसे ऊंची समुद्री लहर 150 मीटर अर्थात 500 फ़ीट ऊंची देखी गयी है।
भारत में सन 2004 में अंडमान द्वीप समूह पर सुनामी आया था।
इसकी वजह से भारत का अंतिम छोर इंदिरा पॉइंट पानी में डूब गया।
सुनामी की जानकारी
26 दिसंबर 2004 को भारत में आया था सुनामी Tsunami , जब एक साथ ढ़ाई लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
दिसंबर 2014 को इंडोनेशिया के उत्तरी भाग के निकट हिन्द महासागर में रिक्टर पैमाने पर 9.0 तीव्रता के भूकंप के बाद समुद्र के भीतर उठी सुनामी।
उस समय तक सुनामी की पूर्व चेतावनी जैसी कोई प्रणाली का भारत या हिंदमहासागरीय देशों में प्रचलन नहीं था।
पिछले 40 वर्षों में दुनिया ने ऐसी भयंकर प्राकृतिक आपदा नहीं देखी थी।
हिंद महासागर में उठी सुनामी की लहर ने भारत समेत दुनिया के 13 देशो (थाइलैंड, बांग्लादेश, मलेशिया, म्यांमार, मेडागास्कर, मालदीव, श्री लंका , सोमालिया, तंजानिया, केन्या में भारी तबाही मचाया।
इसमें भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी तट पे रहने वाले कई लोग मारे गए।
ज्वार-भाटा (TIDES)
मान लीजिये आप सुबह 8:00 बजे समुद्र में नहाने जाते हैं।
तो परिवार का एक सदस्य आपके कपडे, घडी, चप्पल-जूते की देखभाल कर रहा होता है।
वो सदस्य समुद्र से दूर बैठता है जहाँ तक समुद्र का जल नहीं पहुँचता।
लेकिन अचानक समुद्र की एक लहर वहां तक पहुँच जाती है।
क्यों? समुद्र का जल सुबह से दोपहर १२:00 बजे तक फैलता है। 12:00 से शाम 6:00 बजे तक सिकुड़ता है। फिर शाम 6:00 बजे से रात के १२:00 बजे तक फैलता है और सुबह ६ बजे तक सिकुड़ता है। जब समुद्र का जल फैलता है तो उसे ज्वार कहते हैं।
इसी प्रकार जब समुद्र का जल सिकुड़ता है तो उसे भाटा कहते हैं।
ज्वार भाटा आने का कारण क्या है?
पृथ्वी पे जब हम किसी भी चीज़ को उछालते हैं तो पृथ्वी अपनी गुरुत्वाकर्षण के कारण उसे नीचे खींच लेती है।
इसी प्रकार का गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य और चन्द्रमा में भी होता है।
अर्थात हम कह सकते हैं कि “ज्वार-भाटा चंद्रमा और सूर्य के पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा खिंचाव के कारण उत्पन्न होता है।”
ज्वर भाटा से सम्बंधित कुछ रोचक बातें
- चंद्रमा सूर्य से 2.6 लाख गुना छोटा तो है लेकिन सूर्य की तुलना में 380 गुना पृथ्वी के अधिक समीप भी है। जिसकी वजह से चंद्रमा, सूर्य की तुलना में 2.17 गुना अधिक ताकत से जल को अपनी और खींचता है।
- पृथ्वी की सतह अपने केंद्र की तुलना में चंद्रमा से लगभग 6400 km. निकट है। इस वजह से पृथ्वी के उस भाग में जो चाँद के सामने होता है, आकर्षण अधिकतमऔर ठीक उसके दूसरी ओर न्यूनतम होता है।
- चन्द्रमा के इस आकर्षण के प्रभाव के कारण उसके सामने स्थित समुद्री जल ऊपर उठ जाता है, जिससे वहां ज्वार आता है।
- समुद्र का जल ज्वार की ओर खिंच जाने के कारण बीच में समुद्र का तल सामान्य से नीचे चला जाता है, जिससे वहाँ भाटा उत्पन्न होता है।
- एक दिन में सामान्यतः दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा पृथ्वी की घूर्णन के कारण आता है।
ज्वार भाटा के प्रकार
दीर्घ अथवा उच्च ज्वार (SPRING TIDE)
अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों में एक सीध में होते हैं।
इसकी वजह से समुद्र के जल को सूर्य और चन्द्रमा दोनों अपनी और खींचते हैं।
ऐसे में ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती है।
इसे वृहद् ज्वार या उच्च ज्वार कहते हैं।
उच्च ज्वार के कारण समुद्री मछलियां तट की और चली आती है जिससे मछुआरों को मक्कछ्ली पकड़ने में सुविधा होती है।
कलकत्ता में हुगली नदी का जल धीरे से जाकर बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाता है।
उसमे कम जल की वजह से बड़े जहाज़ समुद्र से नदी में नहीं आ पाते।
मगर जब उच्च ज्वार होता है तो हुगली में जल की मात्रा बढ़ जाती है जिससे बड़े जहाज़ आसानी से नदी किनारे तक पहुँच पाते हैं।
लघु या निम्न ज्वार (NEAP TIDE)
शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं।
ऐसे में चन्द्रमा और सूर्य पृथ्वी से 90 डिग्री का कोण बनाते हैं।
इसमें पृथ्वी के जल को सूर्य अपनी और सींचता है और चन्द्रमा अपनी और।
इस कारण सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं।
इसी प्रकार जब पृथ्वी के एक और सूर्य और ठीक विपरीत और चन्द्रमा होता है तब भी निम्न ज्वार होता है।
इन दोनों ही परिस्थितियों में उत्पन्न ज्वार औसत से 20% कम ऊँचे होते हैं ।
इसे लघु या निम्न ज्वार कहते हैं।
महासागरीय धाराएं
महासागरीय धाराएं दो प्रकार की होती हैं – गर्म एवं ठंडी।
जिस प्रकार हवाएं तापमान में अंतर के कारण चलने लगती हैं उसी प्रकार महासागरीय धाराएं भी तापमान में अंतर के कारण चलने लगती हैं।
पृथ्वी है गोल, जिसकी वजह से इसके मध्य भाग में ज्यादा गर्मी पड़ती है।
समुद्र का जल गर्म हो जाता है। ध्रुवों पर होती है ठण्ड, इसलिए वहां का समुद्री जल होता है ठंडा।
ठंडी जल धारा होती है भारी इसलिए वो पानी के नीचे नीचे से आने लगती है भूमध्यरेखा (पृथ्वी के मध्य भाग में) की और।
इसे ही महासागरीय धाराएं कहते हैं।
ये अनुभव अक्सर हमे रसोई में चाय बनाते वक़्त होता है।
जैसे ही बर्तन में जल डाल कर हम गैस जलाते हैं, बर्तन के सतह का पानी गर्म हो जाता है और ऊपर का पानी ठंडा होता है।
इस वजह से हमे बर्तन के एक तरफ से बुलबुले उठते हुए दिखाई देते हैं।
गर्म जल ऊपर उठने लगता है और दूसरी तरफ से ठंडा जल नीचे की और बहने लगता है।
इसी प्रकार जब सागरीय जल एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर एक जल राशि के रूप में प्रवाहित होता है तो उसे सागरीय जलधारा कहते हैं।
निष्कर्ष: कक्षा 7 भूगोल अध्याय 5 “जल”
जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है।
इसकी एक-एक बूँद कीमती है।
इस अध्याय को पढ़ने और पढ़ाने के साथ-साथ हमे जल संरक्षण की नयी तकनीक का भी उपयोग करना चाहिए https://hindividya.com/rain-water-harvesting-hindi/।
NITI आयोग के अनुसार दक्षिण, मध्य एवं उत्तर पश्चिमी भारत तथा ग्यारह अन्य देशो में 2030 तक ZERO WATER जैसी स्थिति हो सकती है https://www.tourmyindia.com/blog/world-with-water-crisis/।
सामाजिक विज्ञान
(www.shapingminds.in)
(भूगोल) (अध्याय 5) (जल)
(कक्षा 7)
अभ्यास
1. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिये :
क) वर्षण क्या है ?
उत्तेर) आसमान से जल की बूंदों का गिरना ही वर्षण कहलाता है।
इस प्रक्रिया में पहले जल वाष्प बनकर उड़ जाता है।
फिर संघनित होकर जलवाष्प बादलों का रूप लेता है।
जब जल की बूंदे भारी हो जाती हैं तो बादलों से नीचे गिरने लगती है जिसे वर्षा या वर्षण कहते हैं।
ख) जलचक्र क्या है ?
उत्तर) बर्फ के पिघलने, वाष्पित होने, संघनित होकर बादल बनने और फिर वर्षा के रूप में धरती पर गिरने की प्रक्रिया को ही जल चक्र कहते हैं।
इसी प्रकार जल पहाड़ों से महासागर, महासागर से वायुमंडल, और वायुमंडल से पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है।
ग) लहरों की ऊँचाई को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
उत्तर) लहरों की ऊँचाई को प्रभावित करने वाले कारक हैं :
१) जल की गहराई
२) वायु की गति
३) सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति
घ) महासागरीय जल को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
उत्तर) महासागरीय जल को प्रभावित करने वाले कारक हैं :
१. सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति
२. महासागरीय जल में लवणता (नमक)की मात्रा
३. जल के तापमान में अंतर्
४. पृथ्वी की घूर्णण गति और
५. वायु की गति
च) ज्वार-भाटा क्या है तथा ये कैसे उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर) पृथ्वी पे जब हम किसी भी चीज़ को उछालते हैं तो पृथ्वी अपनी गुरुत्वाकर्षण के कारण उसे नीचे खींच लेती है।
इसी प्रकार का गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य और चन्द्रमा में भी होता है।
अर्थात हम कह सकते हैं कि समुद्र का जल जब फ़ैल कर तटों को डुबो देता है तो उसे ज्वार और जब सिकुड़ कर तटों से दूर चला जाता है तो उसे भाटा कहते हैं।
दिन में दो बार समुद्री जल का उठना ज्वार और दो बार गिरना भाटा कहलाता है।
सूर्य एवं चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है।
छ) महासागरीय धाराएं क्या हैं?
उत्तर) महासागरीय जल का तापमान में अंतर के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान की और प्रवाह को महासागरीय धाराएं कहते हैं।
जिस प्रकार हवाएं तापमान में अंतर के कारण चलने लगती हैं उसी प्रकार महासागरीय धाराएं भी तापमान में अंतर के कारण चलने लगती हैं।
पृथ्वी है गोल, जिसकी वजह से इसके मध्य भाग में ज्यादा गर्मी पड़ती है।
समुद्र का जल गर्म हो जाता है।
ध्रुवों पर होती है ठण्ड, इसलिए वहां का समुद्री जल होता है ठंडा।
ठंडी जल धारा होती है भारी इसलिए वो पानी के नीचे नीचे से आने लगती है भूमध्यरेखा की और।
इसे ही महासागरीय धाराएं कहते हैं।
२. कारण बताइये :
क) समुद्री जल नमकीन होता है।
उत्तर) जब नदी समुद्र से मिलती है तो अपना सारा अवसाद समुद्र में डाल देती है।
इस प्रकार समुद्र अवसादों से भरता जाता है।
इन अवसादों में सोडियम क्लोराइड या फिर खाने वाला नमक होता है जिसकी मात्रा दिनो-दिन बढ़ती जाती है।
जब समुद्र के जल का वाष्पीकरण होता है तो लवणीय पदार्थ समुद्र में ही रह जाते हैं।
इस वजह से समुद्री जल में लवणता बढ़ती जाती है और समुद्री जल नमकीन होता है।
ख) जल की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है।
उत्तर) उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित जल, खेतों से निकलने वाला रासायनिक जल, गंदे नालों का सीधा नदियों में मिलना, जनसँख्या वृद्धि , लोगों, भ्रष्ट अफसरों और सरकार की लापरवाही के कारण जल की गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है।
INTERESTING FACTS: क्या आप जानते हैं ?
१. भारत सहित भू-मध्य रेखा के ऊपर जितने भी देश हैं वहां जल घडी की दिशा में घूमता है। अपने बाथरूम के टब में पानी भरते समय आप इसे देख सकते हैं। जबकि भू-मध्य रेखा के नीचे जितने भी देश हैं वहां जल घडी की विपरीत दिशा में घूमता है।
२. नदी और समुद्र में नहाने के तरीके में अंतर् होता है। नदी में लोग नाक बंद कर जल में डुबकी लगाते हैं जबकि समुद्र में ऐसा नहीं करते क्योंकि समुद्र में सर का जल के अंदर जाना खतरनाक हो सकता है।
३. यूरोप और उत्तरी अमरीका के बीच अटलांटिक महासागर में स्थित है बरमूडा त्रिकोण। कोई भी जहाज़ या हवाई जहाज़ जो इस त्रिकोण के ऊपर से उड़ता है उसे समुद्र खींच लेता है।
४. भारत में अधिकाँश नदियाँ स्त्रीलिंग हैं जैसे गंगा, यमुना , नर्मदा , गोदावरी , महानदी इत्यादि। मगर कुछ ही नदियाँ पुल्लिंग हैं जैसे सोन, ब्रह्मपुत्र।
५. दुनिया में सबसे अधिक वर्षा मेघालय के चेरापुंजी में होती है। कभी -कभी मौसिनराम में चेरापूंजी से भी अधिक वर्षा हो जाती है। मौसिनराम भी मेघालय में ही चेररापुंजी से कुछ ही किलोमीटर दूर स्थित है।
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