एनसीईआरटी कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

Written By Avinash Sharan

17th April 2021

एन सी ई आर टी कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर” की आज हम यात्रा करेंगे। आप दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई या फिर पहाड़ी, समुद्री जगहों पर तो घूमने गए ही होंगे। मगर क्या आपके मन में कभी ये ख्याल आया की पृथ्वी के अंदर की सैर करें।

पृथ्वी के अंदर की यात्रा आपको रोमांचित कर देगी। आप वो सारी चीज़ें जानेंगे जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं। क्या आपको पता है कि जिस गैस सिलिंडर का इस्तेमाल आप अपने घर में करते हैं उसमे गैस होती ही नहीं है।  विश्वास न हो तो हिलाकर देख लीजिये। उसमे तरल पदार्थ भरा होता है। लेकिन जब हम उसे खोलते हैं तो उसमे से तरल नहीं बल्कि गैस बाहर आती है।  ऐसा क्यों ? पृथ्वी के अंदर भी कुछ कुछ ऐसा ही होता है जो हम कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”  में आज पढ़ेंगे।

एन सी ई आर टी कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

कक्षा ७ भूगोल पाठ २ "हमारी पृथ्वी के अंदर"

                                        कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

पृथ्वी का आंतरिक भाग :

ये तो आपने सुना ही होगा कि पृथ्वी मुख्यतः तीन परतों से बनी है। आपने तरबूज़ तो देखा और खाया भी होगा। तरबूज़ का सबसे ऊपरी परत गहरे या हलके हरे रंग का होता है जिसे हम छिलका कहते हैं।  यह तरबूज़ के ऊपर एक पतली परत जैसी होती है।

पर्पटी :

ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के ऊपर भी एक पतली सी परत है जिसे हम पर्पटी (CRUST) कहते हैं। यह मात्र ३५ KM की होती है। जहाँ पर भी ज़मीन है (महाद्वीपीय भाग) वहां यह ३५ KM मोटी है और समुद्र के नीचे यह मात्र ५ KM मोटी परत है।
जो परत ज़मीन के नीचे पायी जाती है वह सिलिका और अल्युमिना (Si +Al)  से बनी है। जबकि समुद्री सतह के नीचे जो ५ KM की परत है वह सिलिका और मैग्निसियम (Si +Ma) से बनी है।

मैंटल :

तरबूज़ के ऊपर के छिलके को अगर हम निकाल दे तो अब हमें उसकी दूसरी परत दिखाई देगी। यह अक्सर ऊपर की परत से मोटी और सफ़ेद रंग की होती है। ठीक उसी प्रकार पर्पटी के ठीक नीचे पृथ्वी की दूसरी परत होती है जिसे हम मैंटल कहते हैं। यह लगभग 2900 km मोती परत होती है। यह परत भी मुख्यतः सिलिका से ही बानी है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि पृथ्वी के इतने अंदर चट्टानों की गर्मी से क्या हालत होती होगी। मैंटल की निचली परत में चट्टानें पिघल जाती हैं और वो मोम (candle) की तरह नरम हो जाती हैं।

कोर :

अब हम आते हैं तरबूज़ के सबसे अंदर के भाग में जो लाल रंग का होता है। इसी प्रकार पृथ्वी की तीसरी और अंतिम परत जिसे हम कोर कहते हैं, यह भी लाल रंग की दिखाई देती है। यह परत पर्पटी और मैंटल से भी ज़्यादा फैली हुई है।  इसकी मोटाई 3400 km है।  यह पृथ्वी की सबसे भारी परत है जो कि लोहा (iron) और निकक्ल (Nickle ) जैसे भरी पदार्थों (धातुओं)से बनी हुई है। यहाँ का  तापमान 5200 डिग्री सेल्सियस होता है।

शैल एवं खनिज : भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

पृथ्वी की सतह अर्थात पर्पटी अनेक प्रकार के शैलों से बनी है। ये शैल अलग-अलग आकार, प्रकार और रंग के हो सकते हैं। मुख्य रूप से शैल तीन प्रकार के होते हैं : आग्नेय (IGNIOUS), अवसादी (SEDIMENTARY) और कायान्तरित (METAMORPHIC).  आइये एक-एक करके इनकी बनावट को समझते हैं।

१. आग्नेय (IGNIOUS):

जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह चट्टान आग से बानी है। ज्वालामुखी के फटने से जो लावा बाहर आती है और ठंडी होकर जम जाती है उसे आग्नेय शैल कहते हैं। इसे प्राथमिक शैल भी कहा जाता है क्योंकि इसे से अन्य शैल बनते हैं। आग्नेय शैल दो प्रकार की होती है : १. बहिर्भेदी ( EXTRUSIVE) २. अंतर्भेदी (INTRUSIVE) .

 i ) बहिर्भेदी ( EXTRUSIVE):

यह ज्वालामुखी के फटने से पृथ्वी को भेद कर बाहर निकल जाता है और तेज़ी से ठंडा होकर ठोस हो जाता है। पर्पटी पर इस प्रकार के शैल को बहिर्भेदी ( EXTRUSIVE) शैल कहते हैं। इसकी बनावट बहुत ही महीन दानों वाली होती है। इसे सबसे कठोर चट्टान माना जाता है। इसका उदाहरण है बेसाल्ट (BESALT). भारत का दक्कन का पठार इसलिए बहुत ही ज़्यादा ठोस है क्योंकि वो इसी प्रकार की चट्टानों से बना है।

ii ). अंतर्भेदी (INTRUSIVE):

 द्रवित मैग्मा जब पृथ्वी के बाहर नहीं निकल पाता तो वह भू-पर्पटी के अंदर ही ठंडा होकर जैम जाता है। ऐसे चट्टानों को अंतर्भेदी (INTRUSIVE) शैल कहते हैं। इसकी बनावट बड़े दानो वाली होती है। इसका उदाहरण है – ग्रेनाइट। अक्सर आजकल इसका उपयोग रसोईघर में प्लेटफार्म बनाने में प्रयोग किया जाता है।  ज़्यादातर यह काले या हरे रंग का ठोस पत्थर होता है। मकान बनाने में हम जिस गिट्टी का उपयोग करते हैं उसे ही ग्रेनाइट कहा जाता है।

2. अवसादी (SEDIMENTARY) शैल :

तेज़ हवा के झोंके से, गर्म चट्टानों पर पानी की बूँद पड़ने से, नदी के तेज़ बहाव से या फिर चट्टानों के गिरकर या आपस में टकराकर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।  लम्बे समय के बाद ये छोटे-छोटे टुकड़े भी पिस कर पाउडर बन जाते हैं जिन्हें हम अवसाद कहते हैं। जैसा की हम जानते हैं कि नदी इन अवसादों को समुद्र में जमा करती है। जमा होते-होते इन अवसादों का वजन इतना ज़्यादा हो जाता है कि दबाव के कारण ये आपस में चिपक करधिक् भार  ठोस हो जाते हैं।  इन्ही को हम अवसादी शैल कहते हैं। नदी किनारे आपको अक्सर ऐसे पत्थर देखने को मिल जाएंगे जिसमे अलग-अलग रंगों की परत दिखाई देती है। ये पत्थर बिलकुल भी मज़बूत नहीं होते। जैसे बलुआ पत्थर बालुओं के कण जो नदी या समुद्र के किनारे मिलते हैं, उनसे मिलकर बनता है। भारत का हिमालय  पर्वत भी अवसादी चट्टानों ही से बना है। क्या आप जानते हैं हिमालय-भारत का सबसे कमज़ोर पर्वत क्यों है ?

३. कायान्तरित चट्टान  (METAMORPHIC ROCKS ):

जब आग्नेय (IGNIOUS) या अवसादी चट्टान ज़मीन के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी की वजह से दब जाते है तो अत्यधिक भार या तापमान के कारण इनका रूप (काया)बदल  जाता है। इसे ही हम कायांतरित चट्टानें कहते हैं।  इसे भी एक उदाहरण से समझते हैं। आपने अपने घर में रोटी बनते हुए तो देखा ही होगा। जब आटे पर दबाव डालकर हम उसे बेलते हैं और फिर उसे गर्म तवे पर सकते हैं तो आटे का रूप बदल जाता है और वह आटा रोटी में परिवर्तित हो जाता है। क्या आप जानते हैं कि चूने का पत्थर अगर लम्बे समय तक ज़मीन के नीचे अत्यधिक ताप और दबाव में रहेगा तो एक समय के बाद वह संगमरमर में तब्दील हो जाएगा।

शैलों /चट्टानों का महत्त्व – भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

शैल या फिर पत्थर हमारे लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। कठोर पत्थरों का उपयोग हम घर, सड़क या फिर ईमारत बनाने में करते हैं।  चुना पत्थर का उपयोग घर की पुताई में किया जाता है।  कुछ ऐसे भी पत्थर होते हैं जिनका इस्तेमाल उद्योगों में सीमेंट बनाने में किया जाता है. कुछ जो कमज़ोर पत्थर होते हैं उनका उपयोग टैलकम पॉवडर या फिर CARROM BOARD पॉवडर बनाने में किया जाता है। इस प्रकार पत्थर का हमारे दैनिक ज़िन्दगी में बहुत अधिक मतत्व है।

 भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

शैल चक्र (ROCK-CYCLE):

जल चक्र के बारे में तो आपने सुना ही होगा। उसी प्रकार शैल चक्र भी होता है। सबसे पहले ज्वालामुखी के फटने से आग्नेय शैलों का निर्माण होता है। उसके बाद हवा ,पानी से चट्टानें टूटती हैं जो एक जगह जमा होकर  दबाव के  कारण अवसादी चट्टानें बनती हैं। फिर प्राकृतिक उथल-पुथल की वजह से आग्नेय और अवसादी चट्टानें ज़मीन में दब कर कायांतरित चट्टानों में परिवर्तित हो जाती हैं। इस प्रकार  शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती हैं, बल्कि इनमें परिवर्तन होता रहता है। शैल चक्र एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय शैलें प्राथमिक शैलें हैं तथा अन्य दो शैलें (अवसादी एवं कायांतरित) इन प्राथमिक शैलों से ही निर्मित होती हैं।

एन सी ई आर टी कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर” पाठ हिंदी में पढ़ने के इस https://ncert.nic.in/ncerts/l/ghss202.pdf लिंक पर क्लिक करे।

एन सी ई आर टी कक्षा ७ भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

अभ्यास

१.  निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिये :

(क) पृथ्वी की तीन परतें क्या हैं?

उत्तर) पृथ्वी की तीन आंतरिक परतें हैं –  पर्पटी (CRUST), मैंटल (MANTLE) एवं कोर (CORE )

(ख) शैल क्या है ?

उत्तर) वे पदार्थ जिनसे पृथ्वी के भू-पर्पटी का निर्माण हुआ है उसे हम शैल कहते हैं।

 (ग) तीन प्रकार की शैलों के नाम लिखें ?

उत्तर) तीन प्रकार की शैलें हैं – आग्नेय  (IGNEOUS) ,अवसादी (SEDIMENTARY) और  कायांतरित (METAMORPHIC)

(घ) बहिर्भेदी एवं अंतर्भेदी शैल का निर्माण कैसे होता है ?

उत्तर) बहिर्भेदी शैल : यह ज्वालामुखी के फटने से पृथ्वी को भेद कर बाहर निकल जाता है और तेज़ी से ठंडा होकर ठोस हो जाता है। पर्पटी पर इस प्रकार के शैल को बहिर्भेदी ( EXTRUSIVE) शैल कहते हैं। इसकी बनावट बहुत ही महीन दानों वाली होती है। इसे सबसे कठोर चट्टान माना जाता है। इसका उदाहरण है बेसाल्ट (BESALT)
अंतर्भेदी शैल : द्रवित मैग्मा जब पृथ्वी के बाहर नहीं निकल पाता तो वह भू-पर्पटी के अंदर ही ठंडा होकर जम  जाता है। ऐसे चट्टानों को अंतर्भेदी (INTRUSIVE) शैल कहते हैं। इसकी बनावट बड़े दानो वाली होती है। इसका उदाहरण है – ग्रेनाइट।

(च) शैल चक्र से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर) शैल चक्र एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय शैलें प्राथमिक शैलें हैं तथा अन्य दो शैलें (अवसादी एवं कायांतरित) इन प्राथमिक शैलों से ही निर्मित होती हैं। इस प्रकार  शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती हैं, बल्कि इनमें परिवर्तन होता रहता है।

(छ) शैलों के क्या उपयोग हैं ?

उत्तर) शैल या फिर पत्थर हमारे लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। इनका उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है. जैसे –
I)  कठोर पत्थरों का उपयोग हम घर, सड़क या फिर ईमारत बनाने में करते हैं।
II) चूना  पत्थर का उपयोग घर की पुताई में किया जाता है।
III) इनका इस्तेमाल  उद्योगों में सीमेंट बनाने में किया जाता है.
IV) जो कमज़ोर पत्थर होते हैं उनका उपयोग टैलकम पॉवडर या फिर CARROM BOARD पॉवडर बनाने में किया जाता है।
इस प्रकार पत्थर का हमारे दैनिक ज़िन्दगी में बहुत अधिक मतत्व है।

(ज) कायांतरित शैल क्या है? 

उत्तर) जब आग्नेय (IGNIOUS) या अवसादी शैल ज़मीन के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी की वजह से दब जाते है तो अत्यधिक भार एवं तापमान के कारण इनका रूप (काया) बदल  जाता है। इसे ही हम कायांतरित चट्टानें कहते हैं।
उदाहरण : चूना पत्थर अत्यधिक दबाव और तापमान से संगमरमर में तब्दील हो जाता है।

२. सही उत्तर चिन्हित कीजिये : भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

(क) द्रवित मैग्मा से बने शैल 
 
I)  आग्नेय  ,                    II)  अवसादी                  III )  कायांतरित
 
(ख) पृथ्वी की सबसे भीतरी परत 
 
I)  पर्पटी                      II)  क्रोड                  III )  मेंटल
(ग) सोना, पेट्रोलियम एवं कोयला किसके उदाहरण हैं?
I)  शैल                     II)  खनिज                 III )  जीवाश्म
(घ) शैल जिसमे जीवाश्म होते हैं?
I)  अवसादी                  II)  कायांतरित         III)  आग्नेय
च) पृथ्वी की सबसे पतली परत है ?
I)  पर्पटी                      II)    मेंटल              III )   क्रोड

३. निम्नलिखित स्तम्भों को मिलाकर सही जोड़े बनाइये : भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

(क) क्रोड                                       (I)   पृथ्वी की सतह
(ख) खनिज                                    (II)  सड़क एवं ईमारत बनाने के लिए उपयोग होता है
(ग) शैल                                        (III)  सिलिका एवं एलुमिना से बनता है
(घ) चिकनी मिटटी                         (IV)  इसका एक निश्चित रासायनिक मिश्रण होता है
(च)  सीएल                                    (V)  सबसे भीतरी परत
                                                  (VI)  स्लेट में बदलता है
                                                 (VII) शैल के परिवर्तित होने की प्रक्रिया

४. कारण बताइए : भूगोल पाठ २ “हमारी पृथ्वी के अंदर”

(क) हम पृथ्वी के केंद्र तक नहीं जा सकते।

उत्तर) हम पृथ्वी के केंद्र तक नहीं जा सकते क्योंकि :
I) पृथ्वी का केंद्र बहुत अधिक गहराई तक है।
II) जैसे-जैसे हम पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, अंदर का तापमान भी बहुत बढ़ जाता है।
III) पृथ्वी के केंद्र में तापमान इतना अधिक है कि हम उसे सहन नहीं कर सकते।

(ख) अवसादी शैल अवसाद से बनती है। 

उत्तर) अवसादी शैल अवसाद से बनती है क्योंकि :
I) तेज़ हवा के झोंके से, गर्म चट्टानों पर पानी की बूँद पड़ने से, नदी के तेज़ बहाव से या फिर चट्टानों के गिरकर या आपस में टकराकर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।
II) लम्बे समय के बाद ये छोटे-छोटे टुकड़े भी पिस कर पाउडर बन जाते हैं जिन्हें हम अवसाद कहते हैं।
III) नदी इन अवसादों को समुद्र में जमा करती है।
IV)अवसादों का वजन इतना ज़्यादा हो जाता है कि दबाव के कारण ये चिपक कर  ठोस हो जाते हैं।

(ग) चूना पत्थर संगमरमर में बदलता है। 

उत्तर) चूना पत्थर संगमरमर में बदलता है क्योंकि:
I) जब आग्नेय (IGNIOUS) या अवसादी शैल ज़मीन के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी की वजह से दब जाते है।
अत्यधिक भार एवं तापमान के कारण इनका रूप (काया) बदल  जाता है।
II) इसे ही हम कायांतरित चट्टानें कहते हैं।
III) उदाहरण : चूना पत्थर अत्यधिक दबाव और तापमान से संगमरमर में तब्दील हो जाता है।

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