आखिर क्यों ज़रुरत पड़ी देश को नयी शिक्षा नीति की ?
आजकल नयी शिक्षा नीति 2020 के चर्चे खूब चल रहे हैं।
कई सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया है सरकार ने।
एक जैसा सिलेबस, मातृभाषा को महत्त्व, विषय चुनने की स्वतंत्रता, स्किल डेवलपमेंट, बोर्ड परीक्षा के महत्त्व को
कम करना, कॉलेज की पढाई में कई प्रकार के बदलाव इत्यादि नयी शिक्षा नीति 2020 की कुछ ख़ास विशेषताएं हैं।
मगर प्रश्न ये उठता है कि
आखिर क्यों ज़रुरत पड़ी देश को नयी शिक्षा नीति 2020 की ?
आपने लोगों को इस तरह की बातें करते तो ज़रूर सुना ही होगा :
१. आपका बच्चा कॉमर्स लिया है, क्यूँ, क्या उसे साइंस नहीं मिला ?
२. क्या आपकी बच्ची ARTS लेकर पढ़ रही है। ज़रूर वो टीचर बनेगी।
३. आपके बच्चे को SCIENCE और COMMERCE, दोनों नहीं मिला, बहुत कमज़ोर होगा पढाई में।
४. हुँह, सिर्फ खेलने -कूदने से क्या होता है, होशियार होता तो इंजीनियरिंग या मेडिकल में होता।
५. उनका बच्चा तो डांस करता है, नचनिया बनेगा।
६. आज कल के समय जो SCIENCE नहीं पढता , उसकी ज़िन्दगी बर्बाद है। बेवकूफ लोग COMMERCE और ARTS पढ़ते हैं।
७. अरे वो तो हिंदी MEDIUM का पढ़ा हुआ है, HE DOESN’T KNOW HOW TO SPEAK IN ENGLISH. पूरा गंवार है।
८. अरे पता है , उनके बच्चे का इस साल भी मेडिकल में नहीं हो पाया, इसलिए बेचारा आत्महत्या कर लिया।
९. पढ़ेगा नहीं तो करेगा क्या ? भीख मांगेगा सड़क पर।
१०. क्या ? उनका बच्चा भी डिप्रेशन में चला गया ? हे भगवान् क्या हो रहा है आजकल।
११. एक बात कान खोलकर सुन लो, 95 % से एक नंबर भी कम नहीं आना चाहिए आजकल ७०-८० % से कुछ नहीं होता।
१२. वो कैसे पढ़ लेता है , तुम क्यों नहीं पढ़ पाते ?
ऐसी अनगिनत बातें हम पिछले कई वर्षों से लगातार सुनते आ रहे हैं और आज भी बच्चों को सुनना पड़ रहा है।
क्या हो गया है आजकल के पेरेंट्स को ? मगर गलती उनकी भी नहीं है।
गलती है हमारे देश की सड़ी -गली शिक्षा व्यवस्था की जो ना तो कोई स्किल सिखा पाती है और ना ही रोज़गार दिला पाती है।
शिक्षा व्यवस्था को छोड़ सबकुछ बदल गया
पिछले 34 वर्षों में सड़कों से AMBASSADOR और FIAT कार , कोयले वाला रेल का इंजन , DIAL करने वाला टेलीफोन, हर मोहल्ले में एक नेपाली चौकीदार, सड़कों के किनारे STD BOOTH, BLACK & WHITE T.V. , बच्चों के खिलोने , कागज़ की नाव, 5 और 10 पैसे के सिक्के, घोड़ागाड़ी , मेला , सर्कस इत्यादि कितनी ही चीज़ें बदल (विलुप्त) गयी। मगर नहीं बदली तो वो है हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था।
आज भी हमारी पढाई अ से अनार से शुरू होती है और ज्ञ से ज्ञानी पे समाप्त होती है।
सरकारी विद्यालयों में पढाई के नाम पर हम खिचड़ी परोस रहे हैं जिसे अंग्रेजी में “MID DAY MEAL” कहते हैं।
प्राइवेट स्कूल नर्सरी में एडमिशन के लिए लाखों रूपये डोनेशन ले रहे हैं और पेरेंट्स देने पर मज़बूर हैं।
सरकार किसी की भी रही हो, मगर शिक्षा के स्तर को सुधारने का काम किसी ने नहीं किया।
गाँव और शहर की शिक्षा एवं शिक्षकों के स्तर में फासला आज इतना बढ़ गया है कि इसे कम करना इतना आसान नहीं होगा।
वहीँ दूसरी और सरकारी विद्यालयों और प्राइवेट विद्यालयों के स्तर में भी ज़मीन आसमान का फ़र्क़ हो गया है।
डिग्रियां बढ़ रही है और नौकरियां घट रही हैं।
बच्चे बिना सोचे समझे प्रश्न-उत्तर रटे जा रहे हैं और परीक्षा पर परीक्षा दिए जा रहे हैं मगर फायदा कुछ नहीं।
आलम यह है कि २० वर्षों की पढाई के बाद ५००० रूपये की नौकरी करने पर मज़बूर है https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/education-quality-in-india-challenges-and-solutions।
क्या अब भी आपको लगता है कि देश को नयी शिक्षा नीति की आवश्यकता नहीं थी ?
नयी नीति तभी सफल होगी जब नीयत भी सही हो :
सिर्फ नयी नीति लाने भर से व्यवस्था में बदलाव आ जाएगा , ऐसा सोचना भी गलत है।
कुछ गलती तो हमारी भी रही है।
फिर से चुनाव आएंगे , शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात की जायेगी।
बीजेपी, इसके लिए कांग्रेस को दोष देगी।
कांग्रेस, बीजेपी को दोष देगी और हम ताली बजाकर जयजयकार करेंगे।
हम बेवकूफ बने सुनेंगे और उन्हें फिर से चुनेंगे।
फिर उम्मीद करेंगे कि शायद कुछ अच्छा हो जाए। यही तो हम भी करते आये हैं आज़ादी के बाद से आजतक।
क्यों नहीं ऐसा कानून बनता कि देश के सभी सरकारी अधिकारी, M.P , M.L.A, गाँव का मुखिया , सरपंच सिर्फ अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए बाध्य होंगे वर्ना उनकी नौकरी या सदस्यता समाप्त कर दी जायेगी।
हमें सिर्फ इतना फैसला करना है कि जो भी पार्टी इस कानून को लेकर आएगी हम उसे ही वोट देंगे।
मगर कोई भी ऐसे नियम बनाने को तैयार नहीं है।
अच्छी बात यह है कि नयी शिक्षा नीति कई अहम बदलाव और नयी सोच के साथ लाई गयी है।
इसका हम स्वागत करते हैं।उम्मीद है कि आगे आनेवाली नयी पीढ़ी को इसका लाभ मिलेगा।
अगर सही नीयत से नीति लागु की जाए तो इसका फायदा देश को अवश्य मिलेगा।
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