जिनके कन्धों पर है देश का भविष्य
आज कल के बच्चे जिनके कन्धों पर है देश का भविष्य, क्या वे इस ज़िम्मेदारी को निभा पाएंगे ? क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि बच्चों के कन्धों पर हम देश का भविष्य लाद सकें ? जिनके कन्धों पर है देश का भविष्य, क्या हम उन्हें इस लायक बना रहे हैं ?
तमसो माँ ज्योतिर्गमय का अर्थ होता है अन्धकार से प्रकाश की और जाना।
भारत के कई विद्यालयों में तमसो माँ ज्योतिर्गमय सुबह की प्रार्थना में गाया जाता है मगर
क्या बच्चे सचमुच अन्धकार से प्रकाश की ओर जा रहे हैं ?
मैंने एक बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थी से यूं ही पूछ लिया कि मान लो अगर तुम्हें आज विद्यालय छोड़ना पड़ जाये तो तुम क्या करोगे ?
वो शायद इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था और बेचारा सोच में पड़ गया।
एक फीकी सी मुस्कराहट उसके चेहरे पर थी।
मैंने फिर पूछा कि ये बताओ कि तुमने अपने जीवन के चौदह वर्ष एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में बिताये हैं।
आखिर इन चौदह वर्षों में तुमने कुछ तो सीखा ही होगा ? तुम्हारी अंग्रेजी तो बहुत अच्छी होगी ? उसने कहा नहीं।
तुम तो फुटबॉल खेलते हो क्या तुम फुटबॉल के कोच बन सकते हो ? उसने कहा नहीं।
साइंस के स्टूडेंट होने के नाते तुम दसवीं तक के विद्यार्थियों को साइंस तो पढ़ा ही लोगे ? बेचारा शर्मा गया ।?
उसके मित्र से पूछे गए प्रश्न
उसी के साथ खड़े उसके एक और मित्र से मैंने पूछा,
तुम इतनी सेल्फी लेते हो और प्रतिदिन फेसबुक पर डालते हो , क्या तुम फोटोग्राफी सीख रहे हो ? उसने भी कहा नहीं।
क्या तुम्हारी हिंदी अच्छी है? उसे ज़ोर से हसीं आ गयी क्योंकि उसकी हिंदी अंग्रेजी से भी गयी गुज़री थी।
मैंने पूछा तुम मोबाइल या कंप्यूटर तो ज़रूर चलाते होंगे ? इस बार उसने कहा यस सर।
मैंने पूछा कि अगर मान लो तुम्हारा मोबाइल या कंप्यूटर कभी खराब हो जाये तो क्या तुम उसे रिपेयर कर सकते हो ? फिर उसने कहा नहीं.
मैंने कहा यार, चौदह वर्षों में तुमने इतने पैसे स्कूल, कोचिंग, टूशन, यूनिफार्म , पुस्तकों में खर्च किये और सीखा कुछ भी नहीं।
न तुम अंग्रेजी बोल सकते हो, ना तुम हिंदी लिख सकते हो।
ना तो तुम खेल में अच्छे हो ना ही पढाई में। फोटोग्राफी तुम्हे आती नहीं और योग, डांस ,एक्टिंग, जनरल नॉलेज , कारपेन्टरी से तुम्हारा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है ?
राइटिंग भी तुम्हारी खराब है। आखिर तुम पिछले चौदह वर्षों से स्कूल में क्या करने आते थे?
क्यों और किस चीज़ के लिए इतने पैसे दिए ? अब तो दो महीने बाद तुम्हारी स्कूल की पढाई समाप्त होने वाली है।
तुम क्या बनकर निकलोगे , कभी सोचा है ?
असल में हमने क्या सीखा :
फेसबुक चलाना
वाट्सएप्प पर मेसेज पढ़ना और उसे फॉरवर्ड करना
इधर-उधर की बातें करना
मोटर साइकिल लेकर घूमना फिरना
सुबह उठना- दोपहर को सोना, शाम को उठना और रात को फिर सो आना
झूठ बोलना, दिखावा करना , लड़ना-झगड़ना , बहाने बनाना इत्यादि
नोट;
हम वो सारे काम करते आये जो सब कर सकते हैं और इसके लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं होती।
ये ही हाल आज हमारे देश के लगभग सभी विद्यार्थियों का है।
https://shapingminds.in/सही-पेरेंटिंग-के-लिए-अपना/ विद्यार्थियों में कुछ सीखने की भूख ही समाप्त हो गयी है।
जिस प्रकार ये स्कूल में चौदह वर्ष बिताये , इसी प्रकार ये किसी कॉलेज में भी अगले चार-पांच वर्ष बिता देंगे।
इन्हें इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं है कि ये कितना समय और पैसा व्यर्थ में गवां रहे हैं।
कॉलेज समाप्त होने के बाद ये किसी कॉम्पिटिटिव परीक्षा की तैयारी करेंगे और उसमे अपना भाग्य आज़मायेंगे।
भारत में हम में से अधिकाँश लोगों की ये ही स्थिति है। हम अपने अंदर योग्यता विकसित करने में नाकाम रहते हैं।
हमने ना जाने कितने घंटे टी. वी. , इंटरनेट , फेसबुक, वाट्सएप्प, और सोने में बिता दिया मगर सीखा कुछ भी नहीं।
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हम क्या-क्या सीख सकते थे ?
जब तक बच्चे माँ-बाप के साथ रहते हैं उनके पास सीखने के लिए बहुत कुछ होता है।
कुछ चीज़ें कम समय में सीखी जा सकती हैं जैसे शर्ट में बटन लगाना, कपडे प्रेस करना, खाना बनाना इत्यादि।
बच्चों को सेल्फी लेने का बहुत शौक होता है लेकिन
अगर सेल्फी लेने के साथ ही साथ अगर वे थोड़ी बहुत फोटोग्राफी की बेसिक्स भी सीख ले तो इसमें क्या हर्ज़ है।
हम कोई एक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना तो सीख ही सकते थे। कोई ज़रूरी नहीं कि हम एक्सपर्ट हो।
हम कुछ प्रसिद्द लेखकों की पुस्तके या कहानियां भी पढ़ सकते थे और खाली समय में
अपने पुराने खराब पड़े मोबाइल फ़ोन को खोलकर उसे रिपेयर करने का प्रयास भी कर सकते थे।
छोटे-छोटे ग्रीटिंग कार्ड्स या फिर घर में बेकार पड़ी वस्तुओं से कोई उपयोगी सामान बनाने की कोशिश भी कर सकते थे ।
अपनी हिंदी या अंग्रेजी सुधारने का काम भी कर सकते थे लेकिन हमने कुछ भी करने का प्रयास नहीं किया।
२० वर्षों तक सिर्फ पुस्तक लेकर बैठे रहे और वो समझने का प्रयास किया जो कभी समझ नहीं आया।
एक स्किल ज़रूर होना चाहिए
अगर आप पढाई में भी बहुत अच्छे हो तो भी ये एक बहुत बड़ा गुण है मगर ऐसे बच्चे १ प्रतिशत होते हैं बाकि 99 प्रतिशत कुछ सीख भी नहीं पाते और
पढाई में भी एवरेज ही रह जाते हैं। ऐसे वक़्त में आपके बचपन में सीखी हुई चीज़ें ही काम आती हैं।
जब आप पढाई के क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते तो आप देखते हैं कि आपका एक पुराना मित्र अपनी चित्रकला से लाखों रुपये कमा रहा है ,
कोई अपनी फोटोग्राफी से लाखों रुपये कमा रहा है तो कोई कम उम्र में ही यु -ट्यूब वीडिओ बनाकर अच्छे पैसे कमा रहा है
तब आपको अफ़सोस होता है कि काश मैंने भी पढाई के साथ साथ कोई एक चीज़ और सीखी होती।
समय निकल जाने के बाद नयी चीज़ें सीखना भी मुश्किल हो जाता है.
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