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You are here: Home / AVINASH VIEWS / होली और होलिका दहन मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण

होली और होलिका दहन मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण

8th March 2020 by Avinash Sharan 6 Comments

Contents hide
1 होली – रंगों का त्योहार
1.1 होलिका दहन की कहानी:
1.2 होलाष्टक से सम्बंधित पौराणिक मान्यता :
1.3 होलाष्टक की विशेषता :
1.4 होलिका दहन और होली मनाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण
1.5 Scientific Reason Behind Celebrating Holika Dahan And Holi
1.5.1 पर्यावरण को साफ़ रखने का तरीका:
1.5.2 बीमारी से बचाव :
1.5.3 शरीर की साफ़-सफाई:
1.5.4 नई ऊर्जा उत्पन्न करता है :
1.6 होली पर बरतें ये सावधानी:
1.7 कोरोना का भय और होली का उत्साह

होली – रंगों का त्योहार

होली और होलिका दहन मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण
प्रेम और भाईचारे का त्यौहार – होली

 प्रेम और भाईचारे का त्यौहार है – होली।

यह एक ऐसा त्योहार है जो सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि पूरे उपमहाद्वीप को अपने रंगों से सराबोर कर देता है।

वैसे तो यह हिन्दुओं का त्योहार माना जाता है मगर इसे सभी धर्म के लोग मिलकर मनाते हैं।

होली बसंत ऋतु का त्यौहार है और इसे फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि लोग अपनी सारी कटुता, मन-मिटाव, ईर्ष्या, द्वेष एवं सभी प्रकार के भेद-भाव भुलाकर एक दूसरे को रंग लगा कर गले मिलते हैं।

एक दिन के लिए अपनी पहचान भुला देने का त्यौहार है होली।

आइये जानते हैं होली और होलिका दहन मनाने के पीछे चार वैज्ञानिक कारण कौन-कौन से हैं ?

मगर उससे पहले होलिका दहन की पौराणिक कहानी को जान लेते हैं।

होलिका दहन की कहानी:

"<yoastmarkहोलिका दहन मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण
होलिका दहन की कहानी
प्राचीन काल में हिरणकश्यपु नामक एक पापी राक्षस था।
उसकी इच्छा थी कि लोग भगवान् की जगह उसकी पूजा -अर्चना करें।
परन्तु, विधाता को कुछ और ही मंज़ूर था।
हिरणकश्यपु का पुत्र भक्त प्रहलाद ने ही उसे भगवान् मानने से इंकार कर दिया।
भक्त प्रहलाद भगवान् विष्णु का भक्त था। प्रहलाद के पिता हिरणकश्यपु को ये बात
बिलकुल पसंद नहीं थी।

राजा होने के नाते उसके मन में ये भय था कि स्वयं उसका ही पुत्र उसे भगवान् मानने से

इंकार कर रहा है तो बाकी लोग क्या सोचेंगे।

हिरणकश्यपु की एक बहन थी जिसका नाम था होलिका।

होलिका ने अपने तपोबल से ये वरदान प्राप्त किया था कि उसे अग्नि जला ना सके।

उसने भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए अपने भाई हिरणकश्यपु को एक सुझाव दिया।

सुझाव ये था की भक्त प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग लगा दी जाये।

इससे वरदान  के कारण होलिका तो बच जाएगी लेकिन प्रह्लाद जल कर भस्म हो जायेगा।

होलिका की गोद में प्रहलाद को बिठाकर आग जलाया गया।

भक्त प्रहलाद भक्ति भाव से ईश्वर का नाम लेता रहा।

तभी ज़ोर से हवा चली और जिस चादर को ओढ़कर होलिका बैठी थी वह उड़कर भक्त प्रह्लाद के ऊपर आ गयी।

भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल कर राख हो गयी।

इसलिए होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है।

होली के समय बसंत अपनी पूरी यौवन में होता है।

https://shapingminds.in/क्या-गणेश-जी-एक-आधुनिक-कंप/ चारों ओर हरियाली और उसपर फूलों की खुशबू से सराबोर वातावरण हर किसी  मन मोह लेती है।

एक और किंवदंती के अनुसार होली के ही दिन भगवान् शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था इसी दिन से होलाष्टक की शुरुआत भी मानी जाती है।

होलाष्टक से सम्बंधित पौराणिक मान्यता :

HOLIKA DAHAN
           HOLIKA DAHAN

१. होलिका दहन के आठ (८) दिन पूर्व होलाष्टक माना जाता है।

२. इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

३. किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य जैसे गृह निर्माण, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश इत्यादि की मनाही होती है।

४. पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा (होलिका दहन) तक होलाष्टक रहता है।

५. ऐसे समय में मौसम भी करवट लता है। ग्रीष्म ऋतु धीरे-धीरे  दस्तक देती है और शीत ऋतु दबे पाँव प्रस्थान करती है।

होलाष्टक की विशेषता :

इसकी  विशेषता यह मानी जाती है कि होलोका पूजन से आठ दिन पूर्व होलोका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध

किया जाता है।

फिर उस स्थान पर सूखी घास , सूखे उपले , सूखी लकड़ी व् होली का  डंडा  स्थापित कर दिया जाता  है।

इस दिन को होलाष्टक का प्रारम्भ माना जाता है।

इस दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।

इन आठ दिनों में प्रतिदिन लोग लकड़ियां , सूखे पत्ते इत्यादि लाकर इस स्थान में जमा करते जाते हैं।
इन आठ दिनों में इस जगह लकड़ियों का ढेर जमा हो जाता है।
आठवें दिन होलिका दहन की जाती है।
सारे मोहल्ले वाले एक जगह इकठ्ठा होकर होलिका दहन का आनंद लेते हैं और एक दूसरे को अबीर – गुलाल
लगते हैं।
लोग बड़ों का पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं और अपने-अपने घर प्रस्थान करते हैं।

होलिका दहन और होली मनाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण

Scientific Reason Behind Celebrating Holika Dahan And Holi

पर्यावरण को साफ़ रखने का तरीका:

शिशिर ऋतु में पेड़ के पत्ते सूखकर गिर जाते हैं और  बसंत के समय उसमें नए पत्ते आते हैं।

चारों और सूखी लकड़ी और सूखे पत्तों के कारण आग लगने का खतरा रहता है।

होलिका दहन के नाम पर लोग अपने-अपने इलाके में इन सूखे पत्तों और लकड़ियों को जमा कर

एक जगह इकठ्ठा करते हैं और उसमें आग लगा देते हैं।

होलिका दहन के नाम पर चारों और साफ़-सफाई हो जाती है।

चूंकि ये कार्य सभी लोग मिलकर करते हैं तो इसमें आनंद भी आता है।

बीमारी से बचाव :

होलिका दहन और होली मनाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण
होलिका दहन मनाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण ?

जब भी मौसम (तापमान) में तेजी से बदलाव आता है, तो यह समय पर्यावरण और शरीर में

बैक्टीरिया (सूक्ष्म कीटाणु) को बढ़ा देती है।

ऐसे समय में बैक्टीरिया बहुत ही सक्रिय (ACTIVE) हो जाता है।

अक्सर आप पाएंगे कि लोग खासकर बच्चे सर्दी और जुकाम से पीड़ित हो जाते हैं।

जब चारों और होलिका दहन के रूप में अग्नि जलाई जाती है तो उसके ताप से कीटाणु नष्ट हो

जाते हैं।

होलिका दहन के समय तापमान लगभग 145 डिग्री फेरनहाइट यानी ६२ डिग्री सेल्सियस होता

है।

इस अग्नि की परिक्रमा करने पर होलिका दहन से निकलता ताप शरीर में छुपे बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है।

शरीर की साफ़-सफाई:

होलिका दहन और होली
होली – शरीर की सफाई

बसंत ऋतु से ठीक पहले होता है जाड़े का मौसम।

ठण्ड में लोग अत्यधिक देर तक स्नान करना पसंद नहीं करते।

लोग ठन्डे पानी से दूर रहते हैं।

ठीक तरह से स्नान ना होने की वजह से शरीर के कुछ हिस्सों में गन्दगी जमा हो जाती है।

इससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

होली पर लोग एक दूसरे पर रंग डालकर लोगों  को इतना गन्दा कर देते हैं कि

रंग छुड़ाने के लिए आपको अपने शरीर को रगड़-रगड़ कर नहाना ही पड़ता है।

जिससे आपके शरीर की सफाई हो जाती है।

इस प्रकार कई संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है ।

नई ऊर्जा उत्पन्न करता है :

होली मनाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक कारण
बच्चों को होली खेलने से कौन मना  कर सकता है ?

बसंत के मौसम में तेज़ आवाज़ कानों को चुभती नहीं  बल्कि कर्णप्रिय लगती है।

इसलिए होली के गाने ऊंची आवाज़ में ही अच्छे लगते हैं।

लोग भी तेज़ आवाज़ में गाने बजाकर शोर और नृत्य करते हैं। दौड़ भागकर एक

दूसरे पर रंग डालते हैं। ये सारी  क्रियाएँ शरीर में जड़ता नहीं आने देतीं।

बच्चे, बूढ़े और जवान सभी में एक नई ऊर्जा उत्पन्न कर देता है होली का ये त्यौहार।

होली पर बरतें ये सावधानी:

किसी भी त्यौहार को मनाने का आनंद तभी है जब उसे पारम्परिक रुप से मनाया जाये।
बाकी त्योहारों की तरह होली के त्यौहार मानाने के तरीके में भी विकृति आती जा रही है।
नशे की हालत में लोग फूहड़ हरकतें करते हैं।
गन्दा पानी , कीचड , केमिकलयुक्त अप्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल से होली का मज़ा किरकिरा होता जा रहा है।

ऐसे में हमें निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए :

RASHES ON FACE - HOLI
               RASHES ON FACE – HOLI
१. होली अपनों के साथ और अपनों के बीच ही मनाई जाती है इसलिए अपने घर के आस-पास ही रहे।
२. घर से बाहर निकलते वक़्त शरीर पे हल्का सा तेल लगाकर निकलें जिससे रंग छुड़ाने में आसानी हो।
३. होली सिर्फ उनके साथ खेलिए जिन्हें आप पहचानते हों ।
४. आंखों मे या शरीर पे किसी प्रकार का जलन हो तो तुरंत साफ़ पानी से धो लें।
५. असामाजिक तत्वों से दूर रहे।
६. अजनबी द्वारा दी गयी कोई भी खाने-पीने की चीज़ों से सावधान रहे।
७. पुराने लेकिन टाइट (तंग) कपडे पहनकर निकलें।
८. होली हमउम्र के साथ खेलें।
९. किसी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती ना करें।
१० किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहे और होश में रहकर होली खेलें।
होली रंगों का त्यौहार है।

कोरोना का भय और होली का उत्साह

वैसे तो इस वर्ष कोरोना की वजह से कई लोग होली न खेलने का मन बना लिए हैं।

जगह जगह पर पुलिस भी प्रशासन की ओर तैनात की गयी है।

कई शहरों में धारा १४४ भी लगा दिया गया है।

इन सबके बावजूद लोगों में उत्साह की कोई कमी नहीं है।

खासकर बच्चों को होली खेलने से कौन मना  कर सकता है।

मगर सावधानी और सोशल डिस्टन्सिंग का पालन ज़रूर कर आप इस त्यौहार का आनंद ले सकते हैं।

थोड़ी सी भी लापरवाही कहीं आपके रंग में भंग न डाल दे।https://diwaliessay.in/holi-essay-in-english/

सभी पढ़ने वालों को होली की ढेर सारी  शुभकामनाएं।
आपकी इस वर्ष की होली कैसी रही, नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर ज़रूर बताएं।
+5

About Avinash Sharan

Hello, I am Avinash Sharan working as a dominie (school teacher).My passion for teaching stems from the personal satisfaction I obtain by helping someone learn something new and the numerous benefits it has on my own understanding. My 20+ years experience has framed a conclusion in my mind that a child who says he can and a child who says he can’t are both usually right in their stand point. I see a child with two possibilities: One is that they have more value to add, but are unwilling (yet) to show greater initiative. Another is that they lack the confidence to utilize their "hidden" talents in a public fashion.
I feel motivated to take the responsibility for SHAPING MINDS of the future of tomorrow.
My hobby is writing short stories and directing short but "Thought Provokking" plays. I was awarded as best Director for my plays by IPTA for four consecutive years. I believe in Thinking Differently.

Comments

  1. Satyakam says

    8th March 2020 at 10:08 AM

    Very peoperly covered the concept of holi and that too in a interesting manner.
    Congratulations sir

    +3
    Reply
    • Avinash Sharan says

      8th March 2020 at 3:14 PM

      Thank you sir.

      +1
      Reply
  2. Manisha Khoriya says

    8th March 2020 at 11:27 AM

    An extremely interesting and knowledgeable blog which covers all the important aspects of Holi !

    +1
    Reply
    • Avinash Sharan says

      8th March 2020 at 3:15 PM

      Thank you so much ma’am.

      +1
      Reply
  3. vinita raj says

    8th March 2020 at 5:58 PM

    quite interesting and enjoyable facts of holi. and very congratulations to you sir.

    +2
    Reply
    • Avinash Sharan says

      8th March 2020 at 7:19 PM

      Thanks for reading and replying. it motivates me to write better.

      +1
      Reply

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